टुकड़ों टुकड़ों में जीता रहता हूँ
तिल तिल हर पल मरता रहता हूँ
बंजर ए दिल मेरी "जान" पहले ना था ?
आँसूओ से हर पल सिचता रहता हूँ
एक टुकड़ा मिलन दूसरी जूदाई की
दो पाटो में हर पल पिसता रहता हूँ
परिदो में कुबत कहां चूजे बचा ले ?
शिकारी देख हर पल रोता रहता हूँ
तमाम कोशिश किए हम मिल ना सके ?
फिर भी मिलन की दुआ करता रहता हूँ
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रुठ के हम जायेगे कहां ? रो लेगे, धो लेगे,
थक हार कर बच्चों की तरह -
तेरी आँचल से लिपट सो लेंगे ।
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मेरी ना सही किसी और की सही,
इस जहाँ में ना सही उस जहाँ सही
कहने के लिए वो अपना ना सही,
पर थी कभी अपनी ये बात है सही
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मैं नादान भोला हु मुझे नादान भोला ही रहने दो
ये जख्म गहरे और ताजे हैं इसे ढके ही रहने दो
आंसू से लबा - लब भरेआँखों का ये किनारा
तुम ये गहरे राज ना पूछो इसे राज ही रहने दो
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उसके दुश्मन है बहुत, आदमी अच्छा होगा,
2जी, 3जी, 4जी, 5जी, की तरह दाग नहीं लगा होगा
आदत सी है कुछ लोगों को, रेनकोट पहन कर नहाने की
ये कला तो छपन इंच सीने, वाले को नहीं आता होगा।
⭐ ANAND
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